और फिर सिकन्दर हार गया (And then Alexander lost)
सिकंदर महान, जिसे अलेक्जेंडर द ग्रेट के नाम से भी जाना जाता है। सिकंदर प्राचीन मेसेडोनिया (यूनान ) का एक ऐसे राजा था , जिसने अपने छोटे से जीवनकाल में इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में हुआ था और कम उम्र में ही सिकंदर को सत्ता का नशा इस कदर चढ़ा की अपने पिता राजा फिलिप द्वितीय की मृत्यु के बाद उसने सिंहासन पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अपने सौतेले और चचेरे भाइयों की हत्या करवा दी थी। सत्ता का नशा धीरे धीरे और परवान चढ़ता गया और सिकंदर क्रूर और निर्दयी बनता गया। क्रूरता केवल उनके दुश्मनों तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसने अपने करीबी सहयोगियों को भी नहीं बख्शा। वह शराब के नशे में या गुस्से में आकर अपने ही सेनापतियों और दोस्तों को मार देता था।सिकंदर के जीवन का सबसे विरोधाभासी पहलू उनकी क्रूरता और नैतिकता का संघर्ष है। एक तरफ, वह अपने गुरु अरस्तू के नैतिक सिद्धांतों से प्रभावित थे, लेकिन दूसरी तरफ, उन्होंने सत्ता और विजय के लिए क्रूरता की हदें पार कर दीं। थेब्स शहर का विनाश और पर्सेपोलिस को जलाना उनकी क्रूरता के प्रमाण हैं. यह द्वंद्व बताता है कि एक व्यक्ति का आदर्शवाद उसके व्यवहार के विपरीत कैसे हो सकता है, विशेष रूप से जब वह सत्ता और शक्ति के चरम पर हो। सिकंदर ने थेब्स शहर पर विजय प्राप्त करने के बाद वहाँ के हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया और लगभग 30,000 लोगों को गुलाम बनाकर बेच दिया। फारसी साम्राज्य की राजधानी पर्सेपोलिस पर कब्जा करने के बाद, सिकंदर ने इस भव्य शहर को पूरी तरह से जलाकर राख कर दिया। यह कार्य बदला लेने की भावना का प्रतीक माना जाता है। सिकंदर ने टायर शहर पर कब्ज़ा करने के लिए लंबा घेराव किया। जब शहर गिर गया, तो उन्होंने हजारों लोगों को मार डाला और बाकी को गुलाम बना लिया।
अपने पिता, राजा फिलिप द्वितीय की मृत्यु के बाद, सिकंदर ने एक बड़े अभियान की योजना बनाई। सिकंदर मुख्य लक्ष्य फारसी साम्राज्य को हराना था, जो उस समय दुनिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली साम्राज्य था। सिकंदर ने एक छोटी, लेकिन अनुशासित सेना के साथ फारस पर आक्रमण किया. उन्होंने कई बड़ी लड़ाइयों में जीत हासिल की, जैसे इस्सूस की लड़ाई (Battle of Issus) और गौगामेला की लड़ाई (Battle of Gaugamela), जिसने फारसी साम्राज्य को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
फारस पर विजय के बाद, सिकंदर का अगला लक्ष्य भारत था। 326 ईसा पूर्व में, वह अपनी सेना के साथ भारत की ओर बढ़ा। झेलम नदी के पास उनका सामना पंजाब के राजा पोरस से हुआ। यह युद्ध बहुत भयंकर था, जिसे झेलम का युद्ध या हाइडस्पेस की लड़ाई (Battle of the Hydaspes) के नाम से जाना जाता है। सिकंदर ने यह युद्ध तो जीत लिया, परन्तु सिकंदर की सेना आगे बढ़ने से इनकार कर दिया था। क्योंकि वे लंबे अभियानों से थक चुके थे और उन्हें भारत के विशाल राज्यों और शक्तिशाली हाथियों वाली सेनाओं का सामना करने का डर था। इस वजह से सिकंदर को वापस लौटने का फैसला लेना पड़ा।
सिकंदर वापस लौट रहा था और रास्ते में ही वह बीमार हो गया। हकीम और चिकित्सक बुलाये गए, चिकित्सको ने कहा सिकंदर बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा है, ठीक करना मुश्किल है। अब बचना मुश्किल है। सिकंदर अपनी मृत्यु को समीप आता देख चिकित्सको से मिन्नतें करने लगा, किसी भी तरह से मुझे बचा लो, मैंने अपनी माँ को वचन दिया था कि मरने से पहले उसके पास जरूर आऊंगा।
"नहीं अब कुछ नहीं हो सकता, अब कोई इलाज नहीं है", चिकित्सों ने सिकंदर से कहा।
"बस मुझे घर तक पंहुचा दो, थोड़ा जीवन और बढ़ा दो, कुछ भी उपाय करो। मैं अपनी माँ से अंतिम बार मिलना चाहता हूँ।", सिकंदर ने दुखी भाव से कहा।
चिकित्सको ने कहा, "नहीं सिकंदर अब ख़त्म हो गया है, दवा भी असर नहीं कर रही"
"बस कुछ पल के लिए ही मुझे जीवित रखो, मैं अपना आधा राज्य और संपत्ति दे दूंगा, तुम कहो तो सारा दे दूंगा", सिकंदर ने कहा।
"सिकंदर तुम अपना सर्वस्व दे दो फिर अब अपने जीवन को बढ़ा नहीं सकते", चिकित्सों ने कहा।
सिकंदर ने कहा, मैं सारी उम्र जिस दौलत और सौहरत को बनाने में व्यस्त था, पूरा जीवन इसी में गवां दिया। ये धन दौलत अगर मेरी चंद सांसे नहीं बढ़ा सकती तो किस काम की है ये दौलत और राज्य। काश मुझे इस बात का ज्ञान पहले होता। न जाने मैंने कितने निर्दोष लोगो को मारा, उनके घर जलाये, उनकी दौलत लूटी, मैंने अपना जीवन व्यर्थ कर दिया।
सिकंदर को अब ज्ञान हो गया था कि उसने जो कुछ भी किया जीवन में वो सब व्यर्थ था, मेरे किसी काम का नहीं। जो ज्ञान उसने अपने गुरु अरस्तु से नहीं पाया, वह ज्ञान आज जब मृत्यु उनके सामने आयी तो मिल गया। सिकंदर को ज्ञान की प्राप्ति तो हुयी मगर अब देर हो चुकी थी, अब ज्ञान होने से भी क्या फायदा। सिकंदर सिर्फ पछतावे और ग्लानि के साथ मर रहा था।
अपनी मृत्यु से पहले सिकंदर ने अपने सेनापतियों के सामने तीन इच्छाएँ प्रकट की:-
सिकंदर ने कहा था कि उसकी अर्थी को उन हकीमों और चिकित्सकों द्वारा कंधा दिया जाए जिन्होंने उनका इलाज किया था, ताकि लोग जान सकें कि रोग को हराने वाले हकीम भी मृत्यु को नहीं हरा सकते।
सिकंदर ने आदेश दिया था कि उनकी अंतिम यात्रा के रास्ते में उनके द्वारा जीती गई सारी दौलत बिखेर दी जाए। जिसका उद्देश्य लोगो को यह दिखाना था कि व्यक्ति चाहे जितनी भी दौलत कमा ले, मृत्यु के समय वह खाली हाथ ही जाता है।
सिकंदर ने कहा था कि जब उसकी अर्थी निकाली जाए तो उसके दोनों हाथों को अर्थी से बाहर लटका दिया जाए. ताकि दुनिया को यह संदेश मिले कि दुनिया जीतने वाला सिकंदर भी आज खाली हाथ ही जा रहा है, वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता।
और अंततः 32 वर्ष की उम्र में दुनिया को जीतने वाला महान सिकंदर भी मृत्यु से हार गया। सिकंदर की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में हुई थी।