Vishdhar (विषधर)
एक दिन निकला मैं घर से रात को,
पथ पर पड़ी रस्सी समझ कर सांप को,
उठा लिया मैंने उस काले नाग को।
नाग बोला - छोड़ दे मुझको मैं एक सर्प हूँ,
चल रहे कलयुग का एक फर्क हूँ।
चौंक कर ढीला मैंने उस भुजंग को,
काट ले ना वो किसी मेरे अंग को।
नाग बोला :
काट कर तुझको मैं आखिर क्या करूँ,
काट लूँ तुझको व उलटा मैं मरुँ।
शायद तुझको ये अभी मालूम नहीं,
असली विषधर तू है मैं नहीं।
इंसान ही डसता है हर इंसान को,
बस में हो तो ड़स ले वो भगवान को।
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