जल कुदरत द्वारा दी गई एक ऐसी अमूल्य भेंट है, जिस पर मानव समेत जीव जंतु समेत पूरी प्रकृति निभर्र है। जल बिना धरती की कल्पना अधूरी है बिना पानी ये महज मिट्टी का एक गोला मात्र है, जल ही है, जो प्रकृति को उसकी हरियाली देता है और जीवों को जीवित रखता है। दुनिया भर में पानी की बढ़ती कमी, एक बड़ा चिंता का विषय बना हुआ है। धरती पर मौजूद पीने लायक पानी की मात्रा बहुत तेजी से कम हो रही है. कई बड़े विशेषज्ञों को मानना है कि यदि दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध हुआ, तो वो पानी के लिए ही होगा

मगर क्या हो, जब इसी जल पर कड़ा पहरा लगा दिया जाए. जब दुनिया ये देखे कि पानी बिना वो कहां है? और जब दुनिया इस बात का अंदाजा लगाए कि पानी के लिए होने वाली लड़ाई कैसी होती है? इसका एक उदाहरण हमें मिल चुका है, दक्षिणी अमेरिकी देश बोलिविया में। ऐसे में आइए जानते हैं बोलिविया में हुए जल युद्ध की कहानी क्या थी –

सरकार ने किया पानी का निजीकरण

इस कहानी की शुरूआत होती है, साल 1999 में, जब विश्व बैंक के सुझाव पर बोलिविया सरकार ने कानून 2029 को पारित कर कोचाबांबा की जल प्रणाली का निजीकरण कर दिया। उन्होंने जल प्रणाली को 'एगुअस देल तुनारी' नाम की एक कंपनी को बेच दिया, जोकि स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों का एक संघ था

निजीकरण से पहले तक कोचाबांबा की 80 प्रतिशत आबादी के पास खुद की स्थानीय जल व्यवस्था थी, जोकि एक स्थानीय संस्था द्वारा मुहैया कराई गई थी यह संस्था लोगों से केवल बिजली व कुछ छोटे-मोटे खर्चे लेकर उन्हें पर्याप्त पानी देती थी। मगर दूसरी ओर सरकार व बड़ी एजेंसियों की नजरों में यह स्थानीय संस्थाएं किसी लुटेरे से कम नहीं थीं। ऐसे में जल प्रणाली का निजीकरण होते ही इन सभी संस्थाओं की दुकानें मानो बंद पड़ गईं कानूनी तौर पर अब कोचाबांबा की ओर आने वाले पानी और यहां तक कि वहां होने वाली बारिश के पानी पर भी 'एगुअस देल तुनारी' कंपनी का हक था

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पानी-पानी को मोहताज हुए लोग

निजीकरण के कुछ समय बाद कंपनी ने घरेलू पानी के बिलों में भारी बढ़ोतरी कर दी उन्होंने आम लोगों में पानी की अधिक मांग को देखते हुए उसके दाम एकाएक बढ़ा दिए, इससे लोग बौखला गए

अगर ब्रिटेन जैसे देश की बात करें, तो वहां के लोगों को इस प्रकार के अधिक दामों की आदत है, क्योंकि वहां पर लोगों के पास जीविका कमाने के पर्याप्त साधन हैं इसकी तुलना में यदि गरीब देशों की बात की जाए, यहां के लोग मुश्किल से महीने में 80 डॉलर महज कमा पाते हैं

उनके लिए इतनी उच्च दरों पर पीने का पानी खरीद पाना मुमकिन नहीं था निजीकरण के कारण जल्द ही लोग पानी के लिए मोहताज होने लगे। अब पानी के लिए लोगों को भारी कीमतें चुकानी पड़ रही थीं और लोगों के पास उन्हें चुकाने के लिए पैसे भी नहीं थे ऐसे में लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश पनपने लगा। विरोध की जंग में जो सबसे पहला संगठन आगे बढ़कर आया उसका नाम था फैबराइल्स यह संगठन कोचाबांबा के फैक्टरी कर्मचारियों का था, उन्होंने सरकार के फैसले का विरोध किया और निजी कंपनियों की मनमानी को रोकने की गुहार लगाई। धीरे-धीरे स्थानीय लोग भी इस संगठन के साथ मिलकर सरकार के सामने खड़े होने लगे

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लोगों ने उठाए हथियार

पानी की यह लड़ाई अब एक बड़े विद्रोह का रूप लेती जा रही थी लड़ाई में फैबराइल्स विद्रोहियों का केंद्र बिंदु बन गई। अपने हक के लिए लोग सड़कों पर उतर आए थे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे थे स्थिति इस कदर खराब हो गई कि बोलिविया सरकार को पुलिस व सुरक्षा दस्तों को सड़कों पर तैनात करना पड़ा इसके बाद इस विद्रोह ने एक जंग का रूप ले लिया

लोगों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए जगह-जगह पर बैरीगेड्स लगाए गए. इनके बावजूद भी बेकाबू भीड़ को रोक पाना मुश्किल हो रहा था. जिसके चलते आर्मी को सड़कों पर उतारा गयालोगों को रोकने के लिए सुरक्षा बल की ओर से गैस के गोले छोड़े गए और उन पर लाठीचार्ज तक किया गया. मगर लोगों का गुस्सा इतनी जल्दी शांत होने वाला नहीं था। इस दौरान गुस्साई भीड़ ने भी पुलिस से आमना सामना करने का मन बना लिया वह भी पैट्रोल बम, लाठी और पत्थर इत्यादि लेकर लड़ने को तैयार हो गए। पुलिस और विद्रोहियों के बीच अच्छी खासी भिड़ंत हुई. जिसमें सैकड़ों लोग घायल हुए, साथ ही घायलों में पुलिस वाले भी शामिल थे

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हक की लड़ाई में कई बेगुनाहों की गई जान

हालातों पर काबू पाने के लिए पुलिस को गोली भी चलानी पड़ी. जिसमें बहुत से बेगुनाह लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी. इसके चलते साल 2000 के अप्रैल महीने तक हालात कुछ ये थे कि कोचाबांबा समेत कई शहरों की व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई। इस स्थिति को देखते हुए सरकार को जल प्रणाली के निजीकरण के अपने फैसले को वापस लेना पड़ा सरकार द्वारा पहुंचाई गई क्षति के हरजाने के रूप में अदालत में एक याचिका भी दायर की गई, मगर कुछ कारणवश उसे वापिस लेना पड़ा

बोलिविया में पैदा हुए इन हालातों को देखते हुए बहुत से देशों ने इसकी निंदा भी की। यह हालात सीधे-सीधे इस और इशारा कर रहे थे कि मौजूदा सरकार लोगों के मौलिक अधिकार देने में पूरी तरह से नाकामयाब साबित हुई है नतीजतन देश में हालात इस कदर बेकाबू हुए। हालांकि सरकार द्वारा फैसला वापस लेने के बाद भी काफी समय तक यह जंग जारी रही. जिसके चलते साल 2006 में एक जल मंत्रालय स्थापित किया गया. इसके 3 वर्ष बाद साल 2009 में बोलीविया के संविधान के तहत जल प्रणाली के निजीकरण की संभावना में छूट दिए जाने का प्रावधान भी दर्ज किया और सरकार ने 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा से इस अधिकार की सफलतापूर्वक मान्यता भी प्राप्त की

खैर मुझे अपने देश की सरकार पर पूरा भरोसा है, हमारे देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। परन्तु सरकारी संस्थाओं का इस कदर तेजी के साथ निजीकरण करना, चिंताजनक है मैं सरकार से अनुरोध करना चाहूँगा कि आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए, सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों में देने की बजाय उनमें मौजूद कमियों को सुधारने पर बल दिया जाये