मां प्यारी मां
कभी राह चलते हुए जब लगती है चोट,
होती है पीड़ा और कहते है होंठ
माँ , मेरी माँ , उई माँ
कितना सरल कितना अल्प
कितना प्यारा है ये शब्द
एक कोमल सी अनुभूति
ममतामयी है यह मूर्ति
ममता का 'सागर' है माँ
सर्वव्यापी ईश्वर है माँ
सारी दुनिया बाद में
लेकिन पहला टीचर है माँ
कितना भी मुश्किल सफ़र हो
पर साया बनकर साथ है देती
धूप में तपकर सारा दिन
सिर पर ममता की छाँव है करती
- Ashish Raj Kiran
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