Pyas : true event that happened during a trip
खंड (१)
चाय - चाय करता चाय वाला
चाय - चाय करता चाय वाला
गरमा गरम समोसे वाला
छोटा सा है यह स्टेशन
सुन्दर दिखने वाला।
गाड़ी आयी प्लेटफ़ॉर्म पर
मच गयी अफरा - तफरी,
ऐसी भीड़ हुयी मानो
उतरी हो उड़न तस्तरी।
भईया जरा इधर आना
ट्रेन के अन्दर से ध्वनि आई,
सुनते ही दौड़ा चाय वाला
बोलो कितनी चाय चाही।
चाय भईया नही चाहिए
हमें चाहिए पानी,
प्यास लगी है बहुत तेज से
नहीं निकलती वाणी।
पानी भईया नही मिलेगा
हम है चाय बेचने वाले,
खड़ा सामने हैंडपंप है
और किसी से मंगवा ले।
खंड (२)
गरमा गरम समोसे है
और साथ में आलू दम,
जितने चाहे उतने ले लो
कीमत है बहुतै कम।
भईया बोले, हे भाई !
देव समोसा हमें खवाए,
पर प्यास लगी है बहुत जोर से
पहले पानी देव मंगाए।
पानी हम काहिसे मंगवाई
इतना समय नहीं है भाई,
जब तक कहीओ यहिसे वहिसे
तब तक जाके खुद ले आई।
क्या भईया आप बात करते है
छोटा सा है 'हरद' स्टेशन,
दो मिनट रूकती है केवल
ऊपर से इतनी पापुलेशन।
खंड (३)
मैं प्लेटफ़ॉर्म में बैठा था
इन्तेजार था अपनी गाड़ी का,
और देख रहा था यह ड्रामा
भिक्षा और भिखारी का।
इतने में सीटी बज गयी
गाड़ी के जाने की,
मुझको कुछ नहीं सूझ रहा था
सिवाय इक बोतल पानी के।
सरे नियमो को तोड़कर
खिड़की से छीनी उनकी बोतल,
ले जाके फ़ौरन हैंडपंप से
दौड़ कर दे दी मैंने बोतल।
थैंक यू छोड़ कुछ कह न सके
गाड़ी भी आ गयी मौसम में,
मैं भी काफी खुश हुआ
कुछ नेक किया जीवन में ।
(कविता की अंतिम पंक्तियों में पूरी कविता का सार समाहित करने की कोशिश कर रहा हूँ)
चाय वाला प्यासा था
और समोसे वाला भी,
पर पानी की प्यास नही
ये प्यास थी सिर्फ पैसों की।
- Ashish Raj Kiran
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