Main Khud Ko Bhul Baitha Hu
दिन भर भटकता हूं इधर उधर
शाम को घर लौट आता हूं
कहीं सुकून मिलता नहीं
तो गम ही समेट लाता हूं
दिल में दर्द और तन्हाई का
एक समुन्दर बना रखा है
हर रात उसी में डूब जाता हूं।
ये देख कर आईना
अब आंखें नम हो जाती है
खुद को न जाने
किस मोड़ पर छोड़ आया हूं
अब ये मैं नहीं कोई और ही है
शख्स जो आइने में नजर आता है
उलझा हूं इस कदर
की रास्ता भूल बैठा हूं
मैं खुद की तलाश में
खुदा को भूल बैठा हूं
कुछ शख्स कहते हैं कि
मुझे कही देखा है
कहीं मिलूं तो बता देना
मैं खुद को भूल बैठा हूं
- Ashish Raj Kiran
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