The Psychology of Lizards : A Study to Make Your Home Lizards Free | Ashish Raj Kiran - Web Author & Shayar
बारिश, बादल, चांद, हवाएं और ये शमा प्यारा, मुझे बेकार लगता है तुम्हारे बिन जहां सारा : Ashish Raj Kiran

The Psychology of Lizards : A Study to Make Your Home Lizards Free

The Psychology of Lizards

दोस्तों इस पोस्ट का शीर्षक पढ़ने में आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा, और लगेगा भी क्यूंकि शीर्षक है ही ऐसा। दरअसल साइकोलॉजी के बारे स्टडी कर रहा था, अचानक मेरी नजर एक छिपकली पर गयी, जिससे मुझे बचपन की एक याद तरोताजा हो गयी। फलस्वरूप एकाएक मन में शीर्षक गूंज उठा "The Psychology of Lizards"

बात उन दिनों की है जब मैं शायद हाईस्कूल में था। दीदी की शादी हो गयी थी तो घर में माँ को सारा काम अकेले ही करना पड़ता था। उनको अकेला काम करते देख कर अक्सर मैं उनके काम में हाथ बटा लिया करता था। छिपकलियाँ तो हर घर में होती हैं, मेरे घर में भी थी और साफ सफाई करते वक़्त अक्सर उनका मल भी मिल जाता था जिसे साफ करने में दिक्कत एवं असहज जैसा महसूस होता था। मैं इस पर विचार करने लगा की कैसे इस समस्या से निजात मिलेगी। मैं इस समस्या से निजात तो चाहता था पर जीवों के प्रति दया भाव हमेशा मेरे मन में रहा, जिस वजह से मैं छिपकलियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहता था। काफी सोचने के बाद मेरे मन में एक ख्याल आया क्यों न इन छिपकलियों को डराया जाये ? क्यूंकि जब इंसान डरते हैं तथा अन्य जानवर भी डरते हैं तो ये छिपकलियां भी जरूर डरेंगी। 

Make Your Home Lizards Free

छिपकलियाँ हमारे घर में रहती है और वो हमको देखती भी हैं परन्तु कभी भी वो आपको देखकर छिप नहीं जाती। हाँ अगर उनके करीब आप जायेंगे तो थोड़ा आपसे दूर चली जाएँगी। मन में यही योजना थी की इनको किसी तरीके से डराया जाये तो ये घर छोड़ कर भाग जाएँगी। उन दिन से मुझे घर में जहाँ भी छिपकली दिखती थी मैं उनको सिर्फ डराने की मंशा से एक पतली और हलकी छड़ी लेकर उनको डराता तथा उनको एक जगह पर टिकने नहीं देता। जहाँ वह रुक जाये उन्हें फिर से छेड़ो। अंततः वो थक जाती थी और घर से बाहर चली जाती थीं या फिर वो ऐसी जगह छिप जाती थीं, जहा पर मेरी नजर न पड़ सके। इसका मतलब ये नहीं की मैं क्रूर हूँ, निर्दयी हूँ। मेरा मकसद सिर्फ उनको भगाना था न की मारना। शायद इसीलिए मैंने उनको सिर्फ डराया हैं कभी भी किसी छिपकली को चोट नहीं पहुचायी। 

घर से छिपकलियों को भगाया 

खैर मेरी योजना काम कर गयी और रोज रोज तंग करने से छिपकलियाँ घर से भाग गयी। मजे की बात तो ये थी कि जो छिपकलियाँ घर से भाग गयी थी अगर वो कभी वापस घर आती थी तो मुझे देखते ही नौ दो ग्यारह हो जाती। शायद उन्होंने ने मुझे पहचान लिया था कि मैं ही वो इंन्सान हूँ जिससे उनको खतरा हैं। 

अब आप सोच रहे होंगे की इसमें Psychology कहा से आ गई ? Psychology है, उक्त क्रिया मैंने सिर्फ कुछ दिन ही की और सारी छिपकलियाँ डरने लगी। अगर निरंतर कुछ समय के लिए इसे दोहराया जाये तो एक समय ऐसा आएगा कि छिपकलियाँ इंसानो को देखते ही डर कर भाग जाएंगी। उनको ये लगेगा कि इंसानो से उनको खतरा है। और फिर धीरे धीरे ये डर उनकी आगे की पीढ़ियों में भी व्याप्त रहेगा। एक उदहारण के माध्यम से ये समझने की कोशिश करते हैं, मान लीजिये कि आप जंगल में के रास्ते से कहीं जा रहे रहे हैं और अचानक आपको एक बड़ा सा एनाकोंडा दिख जाये तो आप क्या करेंगे ? जाहिर सी बात है आप उससे दूर हट जायेंगे। क्यूंकि आपको ये डर है कि ये मुझे निगल जायेगा। शायद कोई और उदहारण देने की आवश्यकता नहीं है, आप लोग मुझसे कहीं ज्यादा समझदार हैं। 

मैंने यह पोस्ट छिपकली के माध्यम से सिर्फ डर की Psychology को समझने के लिए लिखी गयी है। परन्तु आप यह तरकीब अपने घर से छिपकलियों को भगाने के लिए प्रयोग कर सकते हैं, घर से छिपकली, मच्छर, मक्खी आदि को भगाना अपराध नहीं है। पोस्ट को शेयर जरूर करें। 

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